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टनाटन चुनावी मॉडल – अच्छे दिन और सबका साथ और सबका विकास

Negative Attitude
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हमारे वज़ीरेआज़म वेफिक्र हो एक बार फिर विदेश दौरे पर निकल पड़े है. जिन जिन घटनाओ पर ब्रिटेन में साझा प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने विदेशी मीडिया से संवाद स्थापित किया और उनके प्रश्नो का उत्तर दिया, ये वही प्रश्नावली थी जिनको हमारे वज़ीरेआज़म साहब ने घटना के दरम्यान न तो अपने देश की मीडिया को तबज़्ज़ो दिया और न ही विपक्ष को जिसके जरिये देश की मुखिया होने के नाते इन मुद्दो पे जनता उनकी राय समझ सके.वो प्रत्येक घटना के लिए विदेश जाकर जनता या मीडिया से संवाद करना चाहते है वो भी सुक्ष्म रूप में.. ज्यादा जिरह न हो! जब माननीय प्रधानमंत्री महोदय देश में रहते है तो आतंरिक मामलो में उनकी घिघी लगभग बंद ही रहती है.


जो लोग उनके विदेश यात्रा के दरम्यान होने वाले समझौता ज्ञापन या समझौते से उनके चुनावी संकल्पो की संवेदनशीलता के प्रति कार्य प्रदर्शन का आंकलन कर रहे है,उनको इस बात का ख्याल होनी चाहिए की दुनिया भर के प्रत्येक राष्ट्राध्यक्षों के यात्राओं में समझौता ज्ञापन या समझौता उनके तयशुदा यात्रा कार्यक्रम का हिस्सा होता है ताकि उनकी सरकारी यात्रा प्रभावशाली कहा जा सके.ये कोई चमत्कार नहीं वल्कि इसकी रुपरेखा किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के यात्रा पूर्व पारस्परिक समझ के साथ लगभग तैयार की हुई रहती है!


देश में जनता महंगाई से बेहाल है,टीपु सुल्तान का मुद्दा उबल रहा है,नाथूराम गोडसे की 66वीं बरसी सुर्ख़ियो में है और असहिष्णुता के विरोध में नेशनल अवॉर्ड लौटाए जा रहे है लेकिन हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री इन मुद्दो पर सैद्धांतिक तौर पर चुप्पी साधे हुए है और अगर कुछ बोले भी है तो वह भी विदेश में! हमारे प्रधान मंत्री चुनावी रैलियों में स्टार प्रचारक के रूप में इस तरह के मुद्दो पर बढ़ चढ़ कर विरोधियों पर प्रहार करते है लेकिन इन्ही मुद्दो पर प्रधानमंत्री के रूप में जब मीडिया या जनता उनकी राय जाननी चाहती है तो यह उनके पद के मानक पर या तो तुच्छ लगता है या फिर विपक्ष की उनके प्रति साज़िश। शायद ये कटुसत्य है की चुनावी वक्तव्य और सत्तासीन होने के कर्त्तव्य दो अलग अलग पहलु है जिसमे पहला जनता से त्वरित लाभ लेने के लिए और दूसरा अपनी कुर्सी की आयु बढाने के लिए उपयोग किया जाता है.


उनके टीम के सदस्यगण जनता को यह बताने में व्यस्त रहते है की देश में अच्छे दिन चल रहे है,ये सब तो विपक्ष की साज़िश है जो उनके विदेश दौरे और रॉकस्टार शो की कड़ी मेहनत को धूमिल करना चाहते है. वर्ना देश आजादी के बाद पहली बार विकास की राह पर है क्योकि हमारे प्रधानमंत्री ज्यादातर विदेशी यात्राओं में मशरूफ रह रहे है.


एक जमाना था जब कोई राजनैतिक पार्टी या राजनेता नहीं वल्कि नॉन बैंकिंग कम्पनीआं कम समय में चमत्कारिक व्याज दर के जरिये अच्छे दिन दिखाकर न जाने कितने लोगो को चुना लगाया,कितने बर्बाद हो गए पर अच्छा दिन दूर दूर तक दिखाई नहीं दिया। आज के राजनैतिक परिवेश में कमोवेश यही हाल है जिसमे अच्छे दिन के चुनावी जुमलों के संलयन के साथ सत्ता विरोधी लहर का माहौल बना समय सीमा के साथ अच्छे दिन और विकास की खयाली लाटरी बेच पहले तो पांच साल के लिए सत्ता सुनिश्चित कर लो और फिर अगर बाद में कोई इसका हिसाब मांगे तो पिछले साठ साल का हवाला दे त्रिया चरित्र करना शुरू कर दो.जनता श्रद्धा सबुरी वाली है और पांच साल में न जाने कितने ऐसे मौके मिलेंगे जिसमे जनता को कंफ्यूज किया जा सकेगा. है ना टनाटन चुनावी मॉडल – अच्छे दिन और सबका साथ और सबका विकास!


पिछले डेढ़ वर्ष से देश के तमाम मध्यम वर्गीय या काम आय वाले लोग महंगाई के बोझ से इस क़द्र दबे है मानो है हम सभी भारतवासी स्वार्थी लोकतंत्र के ग़ुलाम है…. कुछ भी हो ये मेहनतकश लोग है न,विकास के नाम पर जब तब मालगुजारी लाद दिया जाएगा इनपर!!!

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