Menu
blogid : 11712 postid : 1105163

राजनैतिक दृष्टिपत्र

Negative Attitude
Negative Attitude
  • 102 Posts
  • 91 Comments

बिहार चुनाव २०१५ ज्यो ज्यो नज़दीक आता जा रहा है राजनीति में दृष्टिविहीनों की दृष्टि दृष्टि पत्र के रूप में वापस लौटती नजर आ रही है. देखिये ना २०१४ लोकसभा चुनाव का चुनावी दृष्टि पत्र पता नहीं कौन सी कुचक्र दृष्टि का शिकार हुई की लोग १५०-२०० रुपये प्रति किलो के दर से दाल ख़रीदने को मजबुर है और फिर भी न जाने क्यों हम गरीबी उन्न्मुलन की बात कर रहे है? २०१४ लोकसभा चुनाव में महँगाई के मुद्दे पर रैलियों को सम्बोधित करते हुए राजनीतिज्ञों का गला भर आता था और उनको पुनर्जलीकरण के लिए शीतल जल तक का उपयोग करना पड़ता था, उस समय की सत्तासीन सरकार इस मुद्दे पर मूक,वधिर और दमनकारी नजर आती थी लेकिन आज मूक,वधिर और दमनकारी सरकार या राजनेता होने के परिभाषा में से महँगाई मुद्दे को ही हटा दिया गया है ताकि यह मुद्दा वोट की राजनीति के लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर निष्क्रिय हो जाए और भारतीय प्रजातंत्र के चुनावी विजय के स्वर्णिम इतिहास के गलीचे में अकेले अपनी विजयगाथा पर इतराता फिरे।


बिहार चुनाव २०१५ के लिए बीजेपी के विकास एवं विश्वास के दृष्टि पत्र में महँगाई जैसे मुद्दे का कोई स्थान नहीं है? २०१४ लोकसभा चुनाव के समय अगर महंगाई एक चनावी मुद्दा था तो इस वर्ष यानी २०१५ में यह महामारी है जिससे संक्रमित तो सभी है लेकिन इसको लोकतान्त्रिक आवाज़ प्रदान करने को कोई भी सियासी संस्थायें तैयार नहीं है। ख़ासकर इसके अपने जिन्होंने इसको चुनावी माहौल को चुनावी लहर बनाने में खुब अच्छी तरह से उपयोग किया था! इन राजनीतिज्ञों को सत्ता मिलते ही अचानक विकास एवं विश्वास के दृष्टि से महँगाई धुंधली दिखाई देनी लगी ये अत्यंत चिंताजनक है! राजनीतिज्ञ ये भली भांति जानते है ही की गरीबी और अशिक्षा से ग्रसित युवा देश की कमजोर नेत्र ज्योति में छलावे और भ्रमित करने की सियासत कारगर के साथ साथ टिकाऊ भी है! और इनको जब भी मौका मिलता है इसका भरपूर लाभ उठाते है.१८ अगस्त को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने एक रैली में बिहार को सवा लाख करोड़ का पैकेज देने की घोषणा तो की लेकिन  इसका कार्यान्वयन किस तरह किया जाएगा इसका बीजेपी के विकास एवं विश्वास के दृष्टि पत्र में कोई उल्लेख नहीं है… क़्यो? शायद राजनैतिक रैलियों में नेतागण की दृष्टि भ्रामक करने के उद्देश्य से होती है और जिसका सरकार के विकास एवं विश्वास के दृष्टि पत्र से कोई लेना देना नहीं होता है! गरीबी उन्नमूलन के नाम पर महंगाई को तबज़्ज़ो न देकर हर गरीब परिवार को एक जोड़ा धोती,साड़ी देने एवं सभी दलित और महादलित टोलों में एक मुफ्त रंगीन टीवी देने जैसे क्षणिक लाभ देने वाले वादे से बिहार की गरीबी को सिर्फ सरकारी गरीबी की मान्यता प्रदान करना है…इसमें गरीबी उन्नमूलन का मूल लक्ष्य कहाँ दिखता है?


चुनाव का मौसम है…..वादे है वादो का क्या! पहले विश्वास करो फिर विकास सोचो! मेरे विचार से विकास एवं विश्वास के इस दृष्टि पत्र के लिए यही प्रचार वाक्य फिट बैठता है…अब बिहार की जनता को यह तय करना है की वह इस प्रचार वाक्य को अपनायेगी या फिर बिहार के विकास में श्री नितीश कुमार जी के योगदान और उनके सतत प्रयास को सहयोग देगी!


मेरा मानना है की बिहार चुनाव २०१५ में श्री नितीश कुमार जी का साथ छोड़ना बिहार के हो रहे निरन्तर विकास की रफ़्तार पर रोक लगाना होगा!   बिहार के उन्नति की संवेदनशीलता पर श्री नीतीशजी के पहले २१ मुख्यमंत्रियों और १३ प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल का विधिमान्यकरण करे और फिर यह राय बनाये की बिहार के नेतृत्व की जिम्मेदारी किसको सौंपनी है….

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply