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गैंगरेप-गैंगरेप-गैंगरेप…

Negative Attitude
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गैंगरेप-गैंगरेप-गैंगरेप। इस बार देश की आर्थिक राजधानी,मैक्सिमम सिटी और महिलाओं के लिए सुरक्षित कही जाने वाली मुंबई के परेल इलाके में बीती रात एक महिला फोटोग्राफर के साथ हुई है। मेरे मन में बार बार एक की सवाल उठता है की एक इंसान की क्या मजबूरी हो सकती है जिसके चलते वह गैंगरेप या बलात्कार जैसी अमानवीय हरकत करने को आमादा हो जाए? हमारा समाज अब महाभारत के युग वाला अविकसित समाज नहीं है। विकास के दृष्टिकोण से काफी परिवर्तित हो चूका है आर्यावर्त,शिक्षितों की संख्या अब पहले के मुकाबले कही ज्यादा है,आर्थिक तौर पर लोग मजबूत हुए है,अब गरीब की कीमत और गिनती है हमारे पास इत्यादि इत्यादि लेकिन क्या समाज और शिक्षित बना सामाजिक प्राणी परिवर्तित हुआ है? या फिर शिक्षित होकर भी शिक्षित होने के उद्देश्य को समझना अभी बाकी है? आर्यावर्त के इतिहास में गैंगरेप या बलात्कार कोई नयी बात नहीं,इस प्रकार की कुंठित मानसिकता की झलक हमारे पौराणिक ग्रंथो में भी मिलती है। उदहारणस्वरुप द्वापर में दुस्सासन ने द्रौपदी का चीर हरण समूचे राजसभा के समक्ष किया था। ये राजसभा कोई और नहीं उस वक़्त का प्रतिष्ठित समाज था? खैर,जब भी कोई ऐसी घटना होती है हम शासन और प्रशासन को दोषी ठहराने में मशरूफ हो जाते है और फिर वर्तमान भूतकाल होते ही शांत हो जाता है परन्तु हमारा विकसित समाज इसकी कभी जिम्मेदारी नहीं लेता? गैंगरेप या बलात्कार पर आज (यानि स्वतंत्रता के 66 -67 साल बाद) हम सख्त कानून के प्रति जागृत हुए है,मतलब स्पष्ट है की कही न कही समाज इन कुकित्यों के प्रति ढुलमुल रवैया अपनाता रहा है। क्या यह इस बात का  घोतक नहीं है की इस तरह की मानसिकता को आत्मबल देने में हमारा समाज का खोखला संविधान भी जिम्मेदार है,हमारे समाज का राजतन्त्र भी जिम्मेदार है? महिला शोषण,गैंगरेप या बलात्कार जैसी घटनाएं एक खोखली और कमजोर समाज में ही हो सकती है।

महिला शोषण,गैंगरेप या बलात्कार यानी विकृति भी है और कुंठित यौन मानसिकता भी। जिसे रोकने के लिये कानून और मानसिक बदलाव दोनों की आवश्यकता है। पुलिस की कुछ सीमाएं भी है। पुलिस कितनी ही तत्पर,कितना ही कठोर हो परन्तु अकेले पुलिस और दंड का प्रावधान कुछ भय पैदा कर सकते है परन्तु अपराध नहीं रोक सकते। अपराधों को रोकने के लिये हमें यानी समाज के सामाजिक प्राणियों के अंदर के कोंस्टेबल  को सक्रिय करना होगा। हर समाज और सामाजिक प्राणियों को अपने अंदर के सदगुणों को  विकसित करना होगा। जब तक समाज अपने खोखली संविधान और राजतन्त्र में सकारात्मक और स्वस्थ सोंच को स्थान नहीं देगा तब तक बलात्कार जैसी घटना होती रहेंगी और कानून एक कठपुतली की तरह होगा जिसका हर स्तर पर दुरुपयोग किया जायेगा.जैसा की आज सुरक्षा के लिए बने तमाम कानून के साथ हो रहा है।

मुंबई के राजे-रजवाड़े आज पता नहीं कहाँ दुबक गए है लेकिनमोमबत्ती वाला मोर्चा और हमें न्याय दोका नारा मुंबई की सडको पर जरुर गूंजने वाला है,बलात्कार के बाद का रिवाज जो निभाना है?

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