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बाँट चुट खाए गंगा नहाए

Negative Attitude
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आज के दौर में राजनितिक गठबंधन का मतलब लिव इन रिलेशनशिप जैसा है जिसमे दिनचर्या पति पत्नी जैसा होता है परन्तु कानून अभी भी पेशो पेश में है की इस रिलेशनशिप को पति पत्नी माने या नहीं? केंद्र और राज्य की राजनीती की संगीत की धुन सदैब अलग अलग होती है और अगर इसमें मनभेद हो जाए तो राजनितिक केन्द्रविंदु उतनी प्रभावित नहीं होती लेकिन अगर मतभेद हो जाए तो दूरियां बनाने से अच्छा कोई मार्ग नहीं हो सकता। हर राज्य की अलग अलग समस्याएं होती है और इसी आधार पर राजनीती की दिशा और दशा भी तय होनी चाहिए। और अगर आपमें आत्मविश्वास है की जनता आपके साथ है तो इतनी संवाद की क्या आवश्यकता है? चुनाव का इंतज़ार करें…जनता आपकी ओर से संवाद करेगी।


बाँट चुट खाए गंगा नहाए। केंद्र और राज्य की राजनीती में गठबंधन कमजोर बहुमत और फिर अपनी वजूद बरक़रार रखने के लिहाज़ से अपनी पार्टी को SALE पर लगाने के अतिरिक्त और कोई दूसरा अर्थ नहीं निकलता। भारतीय राजनीती में गठबंधन का सूत्र संवैधानिक संकट है जिसमें शामिल प्रत्येक पार्टी अपने आप को प्रजातंत्र के प्रति कम जिम्मेदार मानने लगती है जो जनता के वोट और पांच वर्षीय संसदीय प्रणाली में मान्यताप्राप्त छलावा है। गठबंधन की राजनीती जब तक चलेगी तब तक बाँट चुट खाए गंगा नहाए भी चलता रहेगा। राष्ट्रीय पार्टी राष्ट्रीय हैसियत से चुनाव में उतरे और क्षेत्रीय पार्टी क्षेत्रीय हैसियत से चुनाव में उतरे तभी जनता समझ पाएगी की राष्ट्रीय हित के लिए किसको जिम्मेदार माना जाए और क्षेत्रीय हित के लिए किसको जिम्मेदार माना जाए? अभी का हाल ऐसा है की गठबंधन यानी व्हिस्की में बियर का कॉकटेल। हैंगओवर होने पर आप समझ ही न पाए की डिहाइड्रेशन हुआ तो किसकी वजह से बियर से या व्हिस्की से या फिर दोनों से?


मल्टी टियर डेमोक्रेटिक सिस्टम में प्रयेक सिस्टम की जिम्मेदारी की अनुसार से ही जनता को मतदान करनी चाहिए मतलब राज्य के लिए राज्य के अनुसार और केंद्र के लिए केंद्र के अनुसार और तभी आप इस व्यवस्था से कुछ उम्मीद भी कर सकते है और दूसरी तरफ एक मतदाता प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का छुपा रुस्तम मालिक होता है और आपके मतदान के नजरिये में परिवर्तन से ही केंद्र,राज्य और फिर गठबंधन जैसे राजनितिक फोर्मुले को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होगा। नहीं तो आप यही सोचते रहेंगे की हैंगओवर हुआ किस वजह से?


जहाँ तक नितीश कुमार की बात है,एक बात तो माननी पड़ेगी की जो प्रजातंत्र पिछले 20 -25 वर्ष में बिहार के लिए कुछ कर नहीं पाया वो कम से कम नितीश कुमार की सरकार ने कर दिखाया है,उनके रिश्ते किससे अच्छे है या उनकी विचारधारा किससे नहीं मिलती ये एक पार्टी और उसके नेतृत्व का आतंरिक मुआमला होनी चाहिए और जनता के लिए तो सिर्फ राजनीतिज्ञों की जनहित से जुडी गतिविधियों से ही मतलब है। वर्ना फिर आप यही सोचेंगे की हैंगओवर हुआ किस वजह से?

अंत में राजनितिक गठबंधन के लिए एक गीत तो बनता है मित्रो और इसी बहाने आप भी इस गीत को गुनगुना इस बदलते ग़ज़लनुमा मौसम का आनंद उठायें…


थोड़ी थोड़ी गुजरे पकड़ कभी ताजा सी हवाएं
सटे सटे से ये रिश्ते अपनी बांह को फैलाएं
मेरा मन तो बस गुनगुनाना चाहें
उसका मन,खुलके गीत गाना चाहें
है जिद्दी ये भी बड़ी मजबूरियाँ भी
दूरियां भी है ज़रूरी,भी है ज़रूरी
ज़रूरी है ये दूरियां…:)

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