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राजनीतिक गठबंधन मतलब राजनीतिक हनीमून

Negative Attitude
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जैसा की हम सभी जानते हैं की राजनीतिक गठबंधन विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा एक आम राजनीतिक एजेंडे पर चुनाव लड़ने या सामूहिक रूप से चुनाव के बाद सरकार के गठन के लिए पारस्परिक लाभ के प्रयोजनों के लिए एक समझौता है.जब कोई एक राजनीतिक दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता तब सरकार गठन करने के लिए कई राजनीतिक दलों का एक साथ मिलना एक राजनीतिक गठबंधन कहा जाता है.समझने में ये बात तो बहुत ही सहज मालूम पड़ती है पर आज के आधुनिक दौर की राजनितिक परिस्थितियां गठबंधन की कुछ अलग ही परिभाषा वयां करती है.हाल ही में एक गणमान्य राजनेता का एक पत्रिका The Week को दिए साक्षात्कार से गठबंधन शब्द का एक नया अवतार सामने आया है.यह साक्षात्कार (“Once my honeymoon with the BJP is over,I will be free to have alliance with any party that supports my goal of making — a developed state”) मीडिया एवं राजनितिक दलों को ३-४ दिन तक गरमाए रखा और फिर ताप के चढ़ते पारो को देखते हुए The Week पत्रिका ने इस साक्षात्कार को अपने वेबसाइट से फ़ौरन हटा भी दिया गया वही दूसरी तरफ इस साक्षात्कार को पूरी तरह से बेबुनियाद बताया गया.अगर यह सत्य है तो यहाँ न्यूज़ की विश्वश्नियता के लिए मीडिया के ऊपर भी प्रश्न  उठनी चाहिए? मतलब चाहे जो भी निकालें साक्षात्कार या साक्षात्कार में वर्णित अंश भारतीय लोकतंत्र में गठबंधन की एक नयी दिशा एवं दशा का इशारा करती है.अब गठबंधन एक आम राजनीतिक एजेंडा नहीं बल्कि लाभ के प्रयोजनों का हनीमून है.गठबंधन के इस नए अवतार के लिए सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के आपस में कमजोर समन्वय ही जिम्मेवार मानी जायेगी.जो बात इनको आपस में बैठ करनी चाहिए वो मीडिया के जरिये कह रहे है.एक गठबंधन को क्या किसी मातहत की जरूरत होनी चाहिए अगर हाँ तो वो गठबंधन नहीं हो सकती? विभिन्न राजनीतिक दलों के लोकतांत्रिक शासन के प्रति समझ की बदलती शैली पांच वर्ष की आयु वाली संसदीय व्यवस्था को तो प्रभावहीन बनाएगा ही साथ साथ १२२ करोड़ हिन्दुस्तानियों के देखभाल का उत्तरदायित्व एक व्यंग्य मात्र रह जाएगा.माफ़ कीजियेगा,अगर एक राजनीतिक गठबंधन हनीमून है तो फिर राजनीतिज्ञों के लिए प्रजातंत्र क्या विलासिता की रसायन मानी जाए? विकास एक अति महत्वपूर्ण मुद्दा के साथ साथ जरूरत भी है पर क्या संबैधानिक भावनाओं के मनोवैज्ञानिक शोषण की कीमत पर? राजनीतिज्ञ उत्तर प्रदेश के विधान सभा के चुनाव परिणाम यानी कमल [राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)] और हाथ {संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग)} पे उठते विश्वास को भूलते नजर आ रहे है? आम आदमी द्वारा क्या राजग क्या संप्रग जैसे कुंठा भरे संबोधन आम आदमी के प्रजातंत्र के प्रति श्रद्धा को कम करता जा रहा है.तत्कालीन परिस्थितियाँ लोकतंत्र को खोखला और जर्जर करती जा रही है,प्रजातंत्र की आधारभूत मान्यता है कि जो भी पार्टी सत्ता में हो उसे देश के मतदाताओं का बहुमत प्राप्त हो पर अपने देश में सत्तासीन होने के लिए केवल सदन के अन्दर सदस्यों का बहुमत जुटा लेना काफी है,सदन के बाहर मतदाताओं के बहुमत कि आवश्यकता नहीं होती और यही कारण है की गठबंधन और हनीमून एक समान हो गया है या फिर कहे की राजनीतिक गठबंधन अब राजनीतिक हनीमून हो गया है? हम अपने संबिधान के लक्ष्यों से कितना भटक गए हैं? और अब यह आवश्यक हो गया है की सारे राजनितिक दल एवं गणमान्य राजनेतागण भारतीय संबिधान की प्रस्तावना को पुनः पढ़ अपने याद्दास्त को ताज़ादम करे.स्वतंत्रता के बाद भारतीय नेताओं ने एक साथ बैठ कर गहन विचार विमर्श के बाद देश के लिए एक संविधान तैयार किया था,जो कई संशोधनों के साथ आज भी लागू है.आइये एक नजर भारतीय संबिधान की प्रस्तावना पर डालते हैं…

भारतीय संबिधान की प्रस्तावना में कहा गया है

  • “हम भारत के लोग, भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न सामाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को समाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वाश, धर्म और उपासना की स्वंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा सभी के लिए व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए, द्रढ संकल्प हो कर, एतद द्वारा इस संबिधान को अंगीकृत और आत्मार्पित करते हैं”


  • “राज्य आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और केवल व्यक्तियों के बीच नहीं बल्कि विभिन्न व्यवसायों में लगे लोगों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा, और सभी लोगों के पोषाहार और जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के साथ ही लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्य मानेगा “

भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी राज्य के दो प्रमुख कर्तव्य हैं,

  • १) सभी के लिए न्याय तथा उनके बीच अवसरों और सुविधाओं की समानता सुनिश्चित करना,
  • २) लोकतंत्र को मजबूत बनाना

संबिधान के लागू होने के 65 वर्षों बाद भी संबिधान के लक्ष्यों को प्राप्त करने में हमें कितनी सफलता मिली है??? हाल ही के मुंबई के आज़ाद मैदान की घटना,असम में जारी हिंसा,देश के विभिन्न शहरो से पूर्वोत्तर के लोगो का पलायन,असंख्य गावं आज भी पक्की सड़कों से नहीं जुड पाऐ हैं,असंख्य गावं आज भी बिजली और पानी जैसी सुविधाओं के लिए मोहताज है इत्यादि – क्या हमारे विकाश के शौर्यगाथा की परिचय के लिए यह पर्याप्त नहीं है??? आज भारत दो खंडो में बंट चूका है,एक शहरी भारत और दूसरा ग्रामीण भारत,शहरी भारत प्रगति की ओर बढ़ रहा है वहीँ ग्रामीण भारत गर्क और बदहाली की ओर.अनुभव करना है तो बिहार जाकर देखें,उत्तर प्रदेश जाकर देखें, पशिम बंगाल जाकर देखें.हाल ही में पशिम बंगाल के 24 Pargana(साउथ) जिला भ्रमण करने का मौका मिला जो कोलकाता सिटी से महज ६०-७० किलोमीटर की दुरी पर है.यहाँ का हाल यह है जैसे मानो लोग मनुष्य की जिंदगी नहीं वल्कि जानवरों से भी बदतर जिंदगी जी रहे हो.सरकारी सुविधाएं मानों इनके लिए स्वप्न हो.ये तो एक सुक्ष्म उदाहरण है तह तक जायेंगे तो अपने आप को भारतीय बताने में संकोच होने लगेगा.अगस्त का महीना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में बड़ा ही यादगार महीना रहा है,भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता दिवस तक,अगस्त का महीना इन सभी ऐतिहासिक लम्हों का गवाह रहा है.परन्तु अगस्त महीने की ये घटना जिसमे राजनितिक स्वरुप एवं  इसके  बदलते मायने इस महीने की विरासत पर एक तीक्ष्ण अघात है.हर वर्ष अगस्त आते ही पूरा देश स्वतंत्रता का जश्न मनाना शुरू कर देता है.पर सवाल यह है आज़ाद भारत से आबाद और खुशहाल भारत बनने में और कितने वर्ष लगेंगे?भारतीय संबिधान की प्रस्तावना में वर्णित एक-एक लफ्ज़ हकीक़त में कब तब्दील होगी? चंद योजनाओं का हवाला दे असंख्य तड़पते मनुष्य की उपेक्षा विकसीत नहीं वल्कि खोखली,जर्जर राजनितिक एवं सामाजिक व्यवस्था दर्शाता है.हनीमून,पक्ष और विपक्ष से ऊपर उठकर राजनीती करनी होगी वर्ना हमारी यह संबिधान कही टुकडो में न बट जाएँ,प्रजातंत्र का कोई नया नामांकरण या नयी परिभाषा न हो जाए? कैसी भी राजनीती हो परन्तु जनहित से परे एवं संबैधानिक मर्यादाओं/कटिबद्धताओं का बलात्कार कर नहीं.व्यवस्था परिवर्तन से ज्यादा जरूरी है संबिधान के प्रति भारतीय राजनीती का परिपक्व,संवेदनशील और पेशेवर होना.वगैर इसके प्रगतिशील,खुशहाल देश की कल्पना नहीं की जा सकती….जागो भारत जागो….भूल चुक लेनी देनी…:-)

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